रेस बादलों से
आज बहुत याद आई तुम्हारी। रोज़ के जैसे ही था आज का दिन भी। ऑफिस में कितना भी काम रहे, तुम हर वक्त जेहन में रहते हो। तुम ही होते हो तुम्हारी ही बात भी होती है।
हुआ यूं के शाम को ऑफिस के बाद जब घर आने को हुई तो काले बादल छाए हुए थे, तेज़ हवा भी चल रही थी।
मैंने भी ना अपनी गाड़ी स्टार्ट की और तेज़ में चलाने लगी। एक बिन बोले वाली रेस शुरू हो गई। मैं जितना तेज़ चलाऊं गाड़ी ये काले काले बादल और तेज़ हो जाते है, बादलों से आगे निकलने की होड़ या ज़िद्द कह लो।
मुझे ना बारिश पसंद है। कई बारी भींगी हूं मैं। कभी कभी गलती से, वरना ज्यादातर जानबूझ कर।
पर पता है क्या, वो जो बारिश हम साथ थे, वो मेरी फेवरेट है। इन बादलों ने तुम्हारी याद दिला दी। वरना हम कहां किसी को याद करते हैं।
Comments
Post a Comment