ट्रेन का ये गलियारा....

ट्रेन, छुक छुक करती, सीटी बजाती, हमको एक जगह से दूसरे जगह ले जाती। 
बचपन में पापा ट्रेन के लिए ऐसे ही कहते थे। कहानियों, कविताओं में भी ऐसे ही पढ़ा था।
लेकिन इससे कहीं ज्यादा कर जाती है ट्रेन। रात भर के इस सफ़र में मैंने कई कहानियों को देखा। कोई मां बाप अपने बच्चों से मिलने जा रहे हैं, तो कोई बच्चा अपने मां बाप से मिलने weekends पर आ रहा है। मेरे बगल सीट में भी एक आंटी जी बैठी हैं, अपनी बेटी के घर जा रही हैं, खूब सारा थैला है इनके पास। इनके husband आए थे, ट्रेन पर चढ़ा के चले गए, इतना समय नहीं मिल पाया उनको की समान जमाने में आंटी की मदद कर पाते। ख़ैर आंटी ख़ुद से ही कर रही थी अपने समान को एडजस्ट। मैंने कहा लाओ आंटी मैं कर दूं।
उन्होंने फट से बोला हां, देख जरा सही से रख दे, आख़िर स्टेशन पर उतरेगा ये सारा सामान। खाने के समान से भरी पड़ी थी उनकी थैलियां, मुझे खुशबू से पता चल रहा था। लेकिन फिर भी मैंने अंजान बन के पूछा बप्पा इतना समान, आंटी आपको कोई लेने आ रहा है ना दिल्ली स्टेशन क्युकी समान बहुत है। आंटी ने बोला हां बेटी आ जायेगी, उसी के लिए खाने का सारा सामान है। बैंक में काम करती है वो, टाइम से कभी खाती पीती नहीं, इसलिए ये सब ले जा रहे हैं ताकि थोड़ा शाम में या टिफिन में भी ले जायेगी खा लिया करेगी बीच बीच में काम से फुरसत निकाल कर।
मुझे मैं याद आ गई। जब मेरी पोस्टिंग भी घर सैकड़ों किलोमीटर दूर थी, मम्मी ऐसे ही ढेर सारा सामान दे भी देती थी, और खुद आती तो लेते भी आती थी।
ये चीजें कभी नहीं बदलती ना। फिर क्या बदल जाता है।
ज़िंदगी अजीब सी क्यूं लगने लगती है। 
खैर ज्यादा गंभीर बातें नहीं, मैंने शर्म को किया bye bye और आंटी से मांग लिए वो गुजिया। ओह, स्वादिष्ट।
सारी मम्मियों के हाथ में जादू है।
फिर क्या, बैठ गए हम दोनों और खूब बातें करी। उन्होंने मुझे बताया कि बेटी उनकी कितना काम करती है बैंक में जो है, फुरसत ही नहीं मिलती, फोन पर बात नहीं कर पाती। उदासी feel की मैंने उनकी बातों में। फिर और बातें शुरू। 
मैंने कहीं पढ़ा था, ना बोलने वाले को और खुद से बातें करने वाले को बस कोई सुनने वाला मिलना चाहिए। और आज मैं उसी सुनने वाले के रोल में थी। आंटी कभी आंखें गीली करती, कभी जोर से हसती बस कहे जा रही थी। अब तक मुझे पता चल गया था कि उनका पूरा एक ज़िले समान खानदान है और सबके नाम भी।
आधी रात हो गई है। नींद नहीं आ रही मुझे, क्युकी मेरे अंदर भी किसी को मिलने की बेचैनी है। पर आंटी की खुशी भाई क्या कहने। कल सुबह हम दोनों अपने अपने रास्ते। उन्होंने मेरा number लिया। शायद हमारी बात फिर हो। लेकिन आज के वक्त के लिए thank you, gannu bhaiya ....

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