तलाश
कितनी ये बात अच्छी है कि अकेला हो चला हूं मैं,
जो था सदियों से, फिर से वही हो रहा हूं मैं,
दूसरों की मुस्कुराहटों में खुद को तलाशता,
अब ख़ुद का हो रहा हूं मैं, हां ख़ुद में खो रहा हूं मैं।
पानी सा हूं, तुम देखो खुद का अक्श मुझमें,
सब लिए बह चला हूं मैं, खुद में खो रहा हूं मैं।
Bahut khub
ReplyDeleteThank youuuuuu
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