An evening at Dal lake....

एक शाम जो तुम्हारे साथ गुज़ारी थी। 
एक शाम जो तुम्हारे साथ गुज़री थी। कुछ भी अलग सा तो नहीं हो रहा था पर फिर भी ख़ास था। डल झील के किनारे पगडंडी पर बैठे, ये जो हल्की सी ठंडी हवा  तुम्हें छू कर मुझ तक आ रही थी, मुझे वो पसंद है। मैंने कई जगह पढ़ा है, कभी कभी किसी के साथ यूं ही बैठे रहो कुछ मत करो फिर भी अच्छा लगता है, ये अब मैं सच में जी रही थी। तो जिसने भी ये लिखा है बहुत सही लिखा है। ये बिल्कुल ऐसा ही होता है, प्यारा सा, बहुत सुकून से भरा। कहीं जाने की जल्दी नहीं, कुछ छूट जाए इसका कोई डर नहीं, जीवन में कितनी उथल पुथल है इसका कोई एहसास नहीं, सब कुछ कितना sorted है। ये शाम कितनी ख़ास है जो अब तक मुझको याद है। जैसे अभी कल की ही बात हो। 

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