आधे पैसे की दवाई

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 नहीं ये क्या है। मेरे चाचा कहा करते थे कि मेरा दिल बड़ा है, इसलिए मैं दूसरों के तकलीफ़ को औरों से ज्यादा महसूस करती हूं क्योंकि मैं बचपन में मूवी देखते देखते रो देती थी। अजीब है ना, आज इस बात पर हसी आती है मुझे। मैं मूवी देखते देखते रो देती थी जबकि आज मूवी देखना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। खैर, आज बात ये हुई की, मैं अपने कंधे के दर्द से परेशान एक डॉक्टर साहब के पास इलाज़ के लिए गई थी। 
हड्डियों और नस रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर साहब के पास मेरी तरह और भी कई लोग थे। अपनी बारी का इंतज़ार करती मैं, एक कुर्सी पर बैठ गई। कंधे के दर्द के मारे मैं अपना सर ऊपर सीधे नहीं उठा पा रही थी। इसलिए आते जाते लोगों के पाव दिख रहे थे मुझे। एक नीली साड़ी में एक महिला आई, नंगे पाव, चप्पल नहीं थे उसके पैर में। अपने पति को दिखवाने आई थी वही पास के बालीडीह नाम के जगह से। चेहरा नहीं दिखा मुझे, दरअसल मुझे दिलचस्पी भी नहीं थी सर उठा कर खुद को तकलीफ़ दूं और उन्हें या किसी और को उधर देखूं भी। ना बिल्कुल नहीं। लेकिन कानों में आवाज़ और उस औरत के आवाज़ में जो दर्द था, उसने मुझे मजबूर कर दिया की मैं देखूं ऐसा कैसे होता है कि खुद नंगे पाव है, सर पर आंचल रखे, सावलें रंग वाली नीली और लाल रंग के साड़ी में जो पैरों के एड़ी से काफ़ी ऊपर बांध रखी थी उसने, बेहाल सी अपनी पति का ख्याल रख रही है। पढ़ी लिखी तो बिलकुल नहीं थी, क्योंकि दवाई तो लालका रंग और हरका रंग से पहचान रही थी। डॉक्टर को दिखाने के बाद वाली घटना की ओर चलते हैं।तो दोस्तों बिल बना 474 रुपए का मात्र। उसने आंचल की पोटली जो किनारे बांध के बनाई थी, खोली और खुल्ले पैसे निकाले। बाबू इसको 200 टका का कर दो, ऐसा वो कंपाउंडर को बोली, क्योंकि और पैसे नहीं थे उसके पास। 200 में तो एक ही दवाई आएगी, बाकी नहीं लेना है क्या, कंपाउंडर ये कह कर दवाइयां समेटने लगा। नहीं..... आवाज़ आई बाद में आ के ले जायेंगे, उस औरत ने बोला। मजबूरी, बेबसी, परेशानी सब मुझे एक साथ उसकी आंखों में दिखाई दे रहा था। लेकिन उसने हिम्मत दिखाई और कहां नहीं.... बाद में आ के ले जायेंगे।
देख के बड़ा अजीब लगा मुझे, बहुत बुरा जैसे शायद, या जैसे कुछ खालीपन सा। शायद क्योंकि मैंने सब देखा और फिर भी मदद नहीं की उसकी। हां, थोड़े क्रांतिकारी विचार आए मेरे मन में, जैसे दवाइयों को फ्री मिलना चाहिए जो अफोर्ड नहीं कर सकते, उन्हें तो पक्का ही। लेकिन मदद नहीं की। तो मैं और मेरे जैसे लोग कहां आते हैं, जो सब देखते हैं, समझते हैं पर कुछ करते नहीं है। हम ऐसे क्यों है, जिस समाज की कल्पना हम करते हैं, उसकी शुरुआत हम ख़ुद से क्यों नहीं करते।
एक सवाल जो हम सबको ख़ुद से पूछना चाहिए और जवाब भी ख़ुद में ढूंढना चाहिए।

Comments

  1. comment में मैं आपको मदद करने को कहने ही वाला था की आपकी भाषा ने मुझे जवाब दे दिया।
    बहुत ख़ूब 👻👻

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