और मैं मुस्कुरा कर उसके पास बैठ गया
कैसे शुरू करना सही रहेगा... क्युकी सही ग़लत के तराजू से ऊपर है ये. कोई स्वीकर कर ले और सही कह दे, ये तो लेखक ने चाहा ही नहीं. लेखक अपनी बात को रख पाए शायद यही काफ़ी है. अपने शब्दों से उन लम्हों को जीवित कर दे और दूसरों को प्रभावित कर दे, पढ़ने वाला ख़ुद को उनमे देख पाए, यही शायद इनाम होगा, क्योंकि असल लम्हा तो लेखक ने जी लिया है. आज सुबह से ही मन बड़ा खुश खुश था, यू ही, बेवजह. घर से दूर किसी और शहर मे अकेले रहना , अपने आप मे एक उबाऊ काम है, लेकिन किसी को आस पास देख...